निरंकारी मिशन दुवारा सतगुरु की किरपा से हर वर्ष विशाल सन्त समागम का आयोजन किया जाता है। समागमों की लड़ी शुरू हुए लगभग 76 वर्ष होने जा रहे हैं। बेहद परिश्रम व लगन से इस विशाल कार्यक्रम की रूपरेखा को क्रियान्वित किया जाता है इसमें सेवादल के साथ-साथ मिशन से सम्बन्धित अनेकों अधिकारियों का विशेष योगदान रहता है। इस समागम में लाखों की तादाद में देश के कोने-कोने से और विदेशों से भी बड़ी संख्या में सन्त महापुरुष भाग लेते हैं।
आप सभी भली-भाँति जानते हैं कि मिशन का वार्षिक सन्त समागम किसी प्रकार की सांसारिक औपचारिकता नहीं है और न ही यह कोई मेला या सांस्कृतिक कार्यक्रम है जो प्रतिवर्ष दिल्ली में और अब समालखा में आयोजित किया जाता है। यह तो विश्वभर की संगतों तथा अन्य जिज्ञासुओं के परस्पर मिलने, एक-दूसरे को समझने का अवसर होता है और इसके साथ-साथ जो महापुरुष साकार रूप में इस महान विभूति के बहुत कम दर्शन कर पाते हैं उन्हें भी अपने नेत्रों को सुख देने का लाभ मिलता है।
चूँकि तरह-तरह की संस्कृतियों व सभ्यताओं वाले व अलग-अलग खान-पान व पहनावे वाले सभी लोग यहाँ मिल-जुलकर रहते हैं इसलिए इस समागम को यदि प्रेम मिलवर्तन व भाईचारे का प्रतीक कहा जाए तो अनुचित नहीं होगा। जो परम सत्कार योग सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज की असीम कृपा से प्राप्त होता है। अतः हमारा सर्वप्रथम यह लक्ष्य बन जाता है कि अधिक से अधिक संगतें समागम में आयें।
सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज एवं पूज्य राज पिता रमित जी के दर्शन करके साकार रूप में आशीर्वाद प्राप्त करें। इसके अतिरिक्त हमारी यह भी चेष्टा रहती है कि हम विश्व के कोने-कोने से आये अपने ब्रह्मज्ञानी महापुरुषों के विचार सुनें और सद्गुरु के प्रति, निराकार के प्रति अपनी निष्ठा को और दृढ़ बनायें और जो सांसारिक एवं भौतिक खुशियाँ हमारे हिस्से में आई हैं उनके लिए कृतज्ञता की भावना व्यक्त करें। सन्तों के समूह के एक जगह एकत्रित होने के कारण इसे सन्त समागम का नाम दिया गया है। इस अवसर पर निरंकारी मिशन के लोगों द्वारा जीवन जीने की कला का एक अलग स्वरूप पूरी दुनिया के समक्ष प्रस्तुत किया जाता है।