चंडीगढ़:-परम पूज्य श्रमण अनगाराचार्य श्री विनिश्चयसागर जी गुरुदेव के शिष्य परम पूज्य जिनवाणी पुत्र क्षुल्लक श्री प्रज्ञांशसागर जी गुरुदेव ने सिद्धचक्र महामंडल विधान के समापन (नौवें) दिवस पर धर्मसभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि
सन्त का आना ही बसन्त आना है। बसन्त आता है तो प्रकृति मुस्काराती है, सन्त आता है तो संस्कृति मुस्कुराती है। सन्त सोते मनुष्य को जगा देता है। पड़े हुए व्यक्ति को पैरों पर खड़ा कर देते है। सूखे को हरा करना बसन्त का काम है, मुर्दे को खड़ा करना सन्त का काम है। फागुन आता है फूलों का त्यौहार लिए, सावन आता है मेघों का मल्हार लिए और सन्त आता है खुशियों का उपहार, कोई गैर नहीं यह धर्म का मन्त्र है कोई और नहीं यह प्रेम का मन्त्र है, कोई बैर नहीं यह सन्त मन्त्र है।
जैन धर्म का महान पर्व अष्टानिका महापर्व है। इन 8 दिनों में सभी देवता नन्दीश्वर द्वीप में निरन्तर भगवान की पूजन-अर्चन करते हैं। उन्हीं की भान्ति चण्डीगढ़ के रत्न समाज श्रेष्ठी श्रीमान धर्म बहादुर जैन सपरिवार ने मिलकर देवताओं की तुलना करते हुए अष्टानिका महापर्व पर सिद्धचक्र महामण्डल विधान की महा अर्चना की और विश्व में शान्ति फैले इस प्रकार की महा मंगलकारी भावना सभी भक्तजनों को एकत्रित करके, गुरु के सानिध्य में सम्पन्न करने का सौभाग्य प्राप्त किया। निरन्तर 8 दिन तक चल रही आराधना का आज समापन दिवस है और इस समापन समारोह पर धर्म श्रेष्ठी श्रीमान धर्म बहादुर जी ने एवं जैन समाज के प्रतिष्ठित व्यक्ति श्रीमान नवरत्न जैन, श्रीमान सन्तकुमार जैन आदि सभी भाई-बन्धुओं ने मिलकर भगवान जी की शोभायात्रा निकाली और यह शोभायात्रा कार्यक्रम का निर्विघ्न समाप्ति का अद्भुत दृश्य है।